आस्तिक भी ज्ञान और तर्क के द्वारा बन जाते हैं नास्तिक

आस्तिक भी ज्ञान और तर्क के द्वारा बन जाते हैं नास्तिक


ईश्वर के अस्तित्व को साबित करने के लिए अक्सर कई प्रश्नों का सामनाकरना पड़ता है कि यदि ईश्वर नहीं है तो इस दुनिया में लाखों-करोड़ों लोगईश्वर क्यूं मानते हैं ? क्यों लोग मंदिरों में पूजा करते हैं ? क्यों मस्जिद मेंनमाज पड़ते है या क्यूं गिरजाघरों में प्राथना करते हैं ?क्या वेअंधविश्वासी हैं ? परंतु इन प्रश्नों को थोड़ा गौर से पड़े तो इसका एक हीजवाब सामने आयेगा , वह हैलाखों-करोड़ों लोग ईश्वर नामक अंधविश्वासमें डूबे हुए हैं। आज भी जो लोग ईश्वर के काल्पनिक अस्तित्व पर विश्वासकरते हैं उसके पीछे कई कारण हैं। पहला कारण - हमारा जन्म जिसपरिवार में होता है , उस परिवार का धर्म , विश्वास हमारे मन-मस्तिष्क मेंबस जाता है। दूसरा कारण -हम जिस समाज में पलकर बड़े होते हैं , उससमाज की रीति-रिवाज आदि काफी दूर तक असर डालता है। तीसरा कारण-हम जिस विद्यालय में पड़ते हैंउसका प्रभाव पड़ता हैं। इन सब के बीच हम बड़े हो जाते हैं लेकिन जन्म के बाद से जो कुछ शिखते ,पड़ते औरदेखते हैं वह हमारे मन-मस्तिष्क में बस जाता हैं। उस से बहार निकलने के लिए नए-नए विषय के प्रति उत्साहजानने की इच्छा अनेक लोगो में नहीं रहता जाता हैं। इस तरह के लोग ही ईश्वर जैसा अंध विश्वास में डूबे रहतेहैं। किसी के विश्वास या अंध विश्वास से ईश्वर का अस्तित्व साबित नहीं होता है। तर्कवादी विचारधारा सेबचपन का विश्वास नया रूप ले सकता है। ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करने वाले लोग भी सही ज्ञान औरतर्क के द्वारा एक दिन नास्तिक बन जाते हैं। ऐसे लोगों के लिए इश्वास एक अन्धविश्वास के सिवाय कुछ नहींहै।

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