मदर टेरेसा को संत क्यों ?
संतोष शर्मा
खबरः एकः 
मदर टेरेसा को मिलेगा संत का दर्जा
आजतक:  कोलकाता, 18 दिसम्बर 2015  
कोलकाता की सड़कों पर गरीबों और बीमारों की सेवा में 45 साल बिताने वाली नोबेल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा को रोमन कैथोलिक चर्च के संत की उपाधि दी जाएगी. पोप फसिस ने यह उपाधि देने के लिए टेरेसा के दूसरे चिकित्सकीय चमत्कार को मान्यता दे दी है.
मिशनरीज ऑफ चैरिटी की प्रवक्ता सुनीता कुमार ने कहा, 'हमें अब वेटिकन से आधिकारिक पुष्टि मिल गई है कि चर्च द्वारा दूसरे चमत्कार की पुष्टि की गई है और मदर को संत की उपाधि दी जाएगी. हमें इसे लेकर बहुत उत्साहित और खुश हैं.' 'गटरों की संत' के नाम से चर्चित नन को सितंबर की शुरूआत में उपाधि दिये जाने की संभावना है.
टेरेसा ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी और कोलकाता में गरीबों, रोगियों तथा अनाथों की सेवा में 45 साल गुजारे. मदर टेरेसा का 87 साल की उम" में 1997 में कोलकाता में निधन हो गया था.
पश्चिम बंगाल की मु"यमंत्री ममता बनर्जी ने मदर टेरेसा को संत का दर्जा दिये जाने के वेटिकन के निर्णय पर मिशनरीज ऑफ चैरिटी को बधाई दी.
ममता ने एक बयान में कहा, 'अभी यह अच्छा समाचार सुना कि मदर टेरेसा को 2016 में संत का दर्जा दिया जाएगा. इस खुशी के मौके पर मिशनरीज आफ चैरिटी को शुभकामनाएं.' कैथोलिक समाचार पत्र 'अवेनिरे' के अनुसार, मदर टेरेसा को पोप के 'जुबली ईयर आफ मर्सी' के तहत चार सितंबर को रोम में आधिकारिक रूप से उपाधि दी जाने की संभावना है. उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था. 
वर्ष 2003 में तत्कालीन पोप जॉन पॉल द्वितीय ने करीब तीन लाख श्रद्धालुओं की उपस्थिति में एक समारोह में तेज प्रकि"या के तहत टेरेसा को 'बेटिफाइड' (धन्य घोषित) किया गया था. 'बीटीफिकेशन' संत की उपाधि की तरफ पहला कदम होता है.
वर्ष 2002 में वेटिकन ने आधिकारिक रूप से एक चमत्कार को स्वीकार किया था जिसके बारे में कहा जाता है कि टेरेसा ने अपने निधन के बाद यह चमत्कार किया. 1998 की इस घटना में पेट के ट्यूमर से पीड़ित एक बंगाली आदिवासी महिला मोनिका बेसरा ठीक हो गई थी. पारंपरिक रूप से संत की उपाधि की प्रकि"या के लिए कम से कम दो चमत्कारों की जरूरत होती है.
टेरेसा के साथ काम कर चुकीं सुनीता ने कहा, 'पहला चमत्कार कई साल पहले कोलकाता में हुआ था. अब का मामला ब"ाजील का है जहां उनकी (टेरेसा की) पूर्व की प्रार्थनाओं के परिणामस्वरूप एक व्यक्ति चमत्कारिक ढंग से ठीक हो गया है.'

युक्तिवादी प्रबीर घोष की चुनौतीः 

मदर टेरेसा स्वयं चमत्कार में विश्वास नहीं करती थी। वो झाड़-फूंक, तंत्रमंत्र आदि को नहीं मानती थी। टेरेसा जब भी बीमार पड़ती थी तो इलाज के लिए अस्पताल जाती थी। किन्तु बड़ी दुःख की बात है किमदर टेरेसा को मित्था चमत्कारी सबूत के आधार पर रोमन कैथोलिक चर्च के संत की उपाधि दी जानी की घोषणा की है। इसका हम युक्तिवादी, तर्कवादी स"त विरोध करते हैं। 
भारतीय विज्ञान व युक्तिवादी समिति ( साइंस एंड रेशनलिस्टस एसोसिएशन ऑफ इंडिया) के अध्यक्ष प्रबीर घोष ने कहा कि मदर टेरेसा को इस तरह काल्कनिक चकत्कार के आधार पर संत की उपाधी देना टेरासा को अपमान करना होगा। यदि उन्हें उपाधी ही देनी है तो मदर के मानसेवा के नाम पर दी जाए। श्री घोष ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की प्रवक्ता सुनीता कुमार और वेटिकन को चुनौती देते हुए कहा कि क्या चैरेटी उनके सामने ऐसा कोई चमत्कारी घटना पेश कर दिखा सकते हैं जिससे द्वारा उनकी ओर से पेश किया गया किसी मरीज को स्वस्थ्य कर सके? क्या चैरेटी प्रबीर घोष की चुनौती का सामना करेगा? 

खबरः दो:  
'चमत्कार' को तार्किक चुनौती
- तर्कवादियों ने मदर टेरेसा के चमत्कार को आधारहीन कहा है
बीबीसी  हिन्दी डॉट कॉम  शुकवार, 04 अक्तूबर, 2002 
मदर टेरेसा के जिस कथित 'चमत्कार' के कारण कैथलिक चर्च के प्रमुख गुरू पोप जॉन पॉल उन्हें संत का दर्जा देने की दिशा में बढ़ रहे हैं, उसे पश्चिम बंगाल के तर्कवादियों ने सिरे से ख़ारिज कर दिया है.
तर्कवादियों का कहना है यह कहना ग़लत है कि मदर टेरेसा का चित्र रख देने मात्र से एक कैंसर पीड़ित महिला चंगी हो गई.
उनका दावा है कि उस महिला का बाद में अस्पताल में इलाज किया गया था.
जिन डॉक्टरों ने मोनिका बेसरा नाम की इस महिला का इलाज किया उनका कहना है कि मदर टेरेसा की मृत्यु के कई साल बाद महिला भी वह दर्द सहती रही.
उधर वेटिकन के धर्मगुरूओं ने इस कथित चमत्कार को मान्यता देते हुए कहा है कि इससे मदर टेरेसा को संत घोषित करने में आसानी होगी.
इंडियन रेशनलिस्ट एंड साइंटिफ़िक थिंकिंग नाम के संगठन से जुड़े प्रबीर घोष पिछले कई साल से चमत्कारों की पोल खोलते रहे हैं.
इस सिलसिले में उन्होंने कई धर्मगुरूओं को चुनौती दी और उनके चमत्कारों को उजागर किया.
उनका कहना है कि कोई भी चमत्कार सिर्फ़ आँखों का भ"म है और ऐसा भ"म कोई भी जादूगर पैदा कर सकता है.
अब उन्होंने मदर टेरेसा के संगठन मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी के दावों को चुनौती दी है.
संगठन का दावा है कि तीस साल की महिला मोनिका बेसरा के कैंसर का इलाज उनके पेट पर मदर टेरेसा का चित्र रख देने मात्र से हो गया था.

'बकवास'
प्रबीर घोष ने इस दावे को 'बकवास' बताया है और कहा है कि इस तरह के दावे हर धर्म में कल्ट यानी चामत्कारिक संप्रदाय स्थापित करने के लिए किए जाते हैं.
उन्होंने कहा है कि मदर टेरेसा को ग़रीबों के हित में किए गए उनके कामों के कारण संतत्त्व दिया जाना चाहिए और अगर झूठे दावों और चमत्कारों को आधार मानकर उन्हें संत बनाया गया तो यह उनकी परंपरा के साथ नाइंसाफ़ी होगी.
उन्होंने कहा है कि कई डॉक्टरों ने पश्चिम बंगाल सरकार को रिपोर्टें दी हैं कि मदर टेरेसा की मृत्यु के कई साल बाद तक मोनिका बेसरा का इलाज होता रहा था.
प्रबीर घोष का दावा है कि मोनिका को मदर टेरेसा की मृत्यु के एक साल बाद सिरदर्द और पेटदर्द की शिकायत के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया था.
डॉक्टरों का कहना है कि अगर इस तरह के चमत्कारों की कहानियॉं फैलाई गईं तो गॉंव-जवार में रहने वाले कम पढ़े लिखे लोग बीमारियों का अस्पताल में इलाज करवाने की बजाए चमत्कारियों को ही तलाशेंगे.
प्रबार घोष ने कहा है कि उनका संगठन चाहता है कि पश्चिम बंगाल सरकार मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करे.
इस विवाद के बारे में जब मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी से संपर्क किया गया तो उन्होंने प्रतिकि"या देने से इनकार कर दिया.

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