सरकारी या सरकारी स्कूलों में सरस्वती पूजा का आयोजन संविधान की मर्यादा का उल्लंघन !

सरकारी या सरकारी स्कूलों में सरस्वती पूजा का आयोजन संविधान की मर्यादा का उल्लंघन  !

संतोष शर्मा 
कोलकाता, ८  फरवरी 2016 । संविधान की मर्यादा का सम्मान करते हुए सरकारी स्कूल या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में सरस्वती पूजा का आयोजन नहीं किया जाए नहीं, उसे  लेकर फिर राज्य से शिक्षा महकमें में विवाद उत्पन्न हो गया है। इसके साथ ही यह प्रश्न उठने लगा है कि देश के किसने फीसदी नागरिक के पास संविधान के बारे में स्पष्ट जानकारी है? 
        संविधान की मर्यादा को कायम रखने के लिए भारतीय विज्ञान और युक्तिवादी समिति की ओर से यह अपील की गयी है। इस अपील में कहा गया है कि हमारे संविधान के अनुसार भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। इस वजह से सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त किसी भी स्कूला में सरस्वाती पूजा का आयोजन असंवैधानिक है। सिर्फ इतना ही नहीं, युक्तिवादी समिति की इस अपील में यह भी कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में मध्य शिक्षा पर्षद या उच्च शिक्षा संसद की निर्देशिका में भी स्कूलों में जिन आयोजनों का जिक" किया गया है, उसमें सरस्वती पूजा का उल्लेख नहीं है। इसलिए युक्तिवादी समिति की तरफ से प्रशासन से अपील की गयी है कि कृपा कर सरकारी या सरकारी सहातया प्राप्त स्कूलों में सरस्वती पूजा का आयोजन नहीं करने का निर्देश देकर देश के संविधान की मर्याया की रक्षा करें। साथ ही संविधायन के मौलिक अधिकार ( धारा 51-ए ) के तहत वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा की दिशा बढ़ें।
          युक्तिवादी समिति के पुरुलिया जिाल सचिव मधुसूदन महतो ने कहा कि वर्ष 2001 में हमने जिले की दो स्कूल प्रबंधनों से संविधायन की मर्यादा कायम रखने के लिए ऐसा आवेदन किया था। उस आवेदन पर एक प्राइमरी स्कूल ने सरस्वती पूजा का आयोजन बंद कर दिया था। किन्तु इस बार स्कूल प्रबंधन से ऐसा आवेदन नहीं किया गया है। आखिर इसकी वजह क्या है? इसके जवाब में श्री महतो ने कहा कि इस बार हमने पुरुलिया जिला के 20 ब्लाक के आठ  गांवों में डीएम, एसपी, डीआई, सेकेंडरी एवं डीआई प्राइमरी के पास अपील की है। वजह, प्रशासन के निर्देश का इन स्कूलों के प्रबंधनों को पालन करने पड़ेगा। 
    किन्तु क्या कहना है पुरुलिया की डीआई यानी डिस्ट्रीक्ट इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स( सेकेंडरी) का ? युक्तिवादी समिति इस अवेदन के बारे में पूछे जने पर पुरुलिया की डीआई राधारानी मुखोपाध्याय ने कहा कि लोकतांत्रिक देश में हम किसी भी स्कूल को सरस्वती पूजा बंद करने का आदेश नहीं दे सकते हैं। मैं एक सरकारी अधिकारी हूं। संविधान के बाहर जाकर  कैसे काम कर सकती हूं? दूसरी ओर इस आवेदन के बारे में प्रश्न करने पर पुरुलिया की डीआई( प्राइमरी) संघमित्र मकुड़ ने कहा कि उन्हें अब तक यह आवेधन नहीं देखा है। बिना देखे कुछ बी नहीं कर सकती हूं। ज्ञात हो कि युक्तिवादी समिति  की ओर से यह आवेदन 2 फरवरी 2016 को किया गया है। फिरभी डीआई ( प्राइमरी) ने इस आवेदन नहीं देखा ? इस तरह से प्रश्न का नजर अंदाज करनेत हुईं संघमित्र माकुड़ ने  उनके पास यह आवेदन नहीं पहुंचा है।
       पुरुलिया के डीएम तन्मय मुखोपाध्याय से संपर्क करने पर उनकी जगह पर एडीएमजी अरुण प्रसाद ने बातें हुईं। वजह, डीएम छूट्टी पर है।  युक्तिवादी समिति के इस आवेदन के बारे में पूछे जाने पर अरुण प्रसाद ने कहा कि इस विषय में वे फैसला नहीं ले सकते हैं। इस विषय के बारे में सरकार को सुचित किया जाएगा। क्या इस बीच सरकार को सुचित किया गया है? इस पर उन्होंने कहा कि सुचित नहीं किया गया। हालांकि मधुसूदन महतो ने कहा कि उन्हें यह उम्मीद है कि संविधान की मर्यादा का सम्मान करने के लिए प्रशासन की ओर से निर्देश दिया जाएगा। यदि प्रशासन निर्देश नहीं देता है तो आगे के कदम के बारे में हमे फैसला लेंगे।
      युक्तिवादी समिति की  केंद्रीय कमिटी के अध्यक्ष प्रबीर घोष ने देश के संविधान के तहत सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त किसी भी स्कूल में भी कोई भी धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जा सकते है। ऐसे स्कूलों में सरस्वती पूजा का आयोजन भी नहीं किया जा सकता है। इसीलिए संविधान की मर्याया का सम्मान करने के लिए युक्तिवादी समिति की ओर से यह अपील की गयी है। उन्हेंने दावा किया कि हमारी अपील पर कोलकाता की कई स्कूलों में सरस्वती पूजा का आयोजन बंद कर दिया गया है। 
        प्रश्न है, क्या संविधान की मर्यादा का सम्मान करने में प्रशासन अर्था पुरुलिया के डीएम, डीआई, (सेकेंडरी) और डीआई ( प्राइमरी) की ओर से इस तहर के बयान क्यों दिए जा रहे है? राधारानी मुखोपाध्याय के बयान के बारे में प्रबीर घोष ने कहा कि शायद संविधान के विषय में पुरुलिया की डीआई सेकेंडर को स्पष्ट जानकारी नहीं है। यदि है तो वे उनके इस बयान का खंडन करे दिखाए। 

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